दिलों की दिल्ली
आज क्या लिखूं, कहाँ से लिखूँ समझ नही आ रहा। दिल्ली की मौजूदा हालात देख कर, लेकिन जो भी हो रहा है एकदम गलत हो रहा है, और यकीन मानो ऐसी स्थिति मैंने पहले कहीँ देख रखी है.... राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फ़िल्म Delhi 6 में। जहां पर मज़हबी दंगे शुरू हो जाते हैं मात्रा एक बंदर की अफवाह से। जी हां फ़िल्म में एक बंदर के वजह से दंगे भड़क जाते हैं, जिसमे अभिषेक बच्चन ने कमाल की भूमिका निभाई है। मुस्लिम पक्ष कहते कि हिन्दुओं ने काले बंदर को छोड़ा है उनके इलाके में और हिन्दू पक्ष यही इल्जाम मुस्लिम समुदाय पे लगते हैं, और यकीन मानिए काला बंदर तो था ही नही बस एक अफवाह थी। काला बंदर नही बल्कि लोगों के दिल काले होगये हैं, जो अपने भाईचारे को भूल कर एक दूसरे से लड़ रहे, देश का माहौल खराब कर रहे हैं। हम सब मे कहीं ना कहीं एक काला बंदर है, मगर जरूरत है गांधी जी के बंदरों की जो अच्छा रास्ता दिखाए। हिंसा कभी भी हल नही हुआ किसी चीज़ का। दोनो पक्षों को अपनी बात अच्छे तरीके से रखना चाहिए और काले बंदर को हराना चाहिए। ये काला बंदर सामने तो नही आता लेकिन लोगों को गुमराह करता है, उनको लड़वाता है, अपनो से दूर करता है, कट्टर बनाता है। मिल कर इस काले बंदर को खत्म करना चाहिए बस गम इस बात का है कि यहां फ़िल्म की तरह कोई अभिषेक बच्चन(रौशन) नही है, देखते हैं क्या सरकार रौशन बन कर दोनों पक्षों को संतोष दिलाती है।
©सुरभि मिश्रा
Surabhi Mishra
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अपील
न जाने कितनी बार और लिखना पड़ेगा इसी मुद्दे पर हर बार नई दलिलें कहाँ से ले के आऊँ मैं? हम क्यों आसान चीज नही समझ पाते, क्यों कोई भी हमें भड़का देता है? क्यों जरूरी है इस कदर लड़ना के दूसरों की जान का कोई मोल ही न रहे। क्या आप दंगाई हैं? नही न? हम तो आम लोग हैं जिनका कोई स्वार्थ नही है किसी को लड़ते देखने का, न कुर्सी का मोह न अपनी विचारधारा को थोपने की होड़। लेकिन फिर भी वो लोग हम ही हैं, जो मर रहे हैं और जो मार रहे हैं। दोनो तरफ से एक दूसरे के धर्मो को गाली दी जा रही है, ये सबब न तो हिन्दू धर्म सिखाता है और न इस्लाम इसकी वकालत करता है। फिर कौन हैं ये लोग जिसने आपसे ये कहा की आपका धर्म खतरे में है? पहली बात तो ऐसा कुछ है नही, और दूसरी बात की कोई धर्म इतना छोटा नही हुआ है की मुझे या आपको किसी की जान लेनी पड़े उसकी रक्षा करने के लिए।
कल लोगों को नंगा कर के उनके लिंग देख कर उनके धर्म की पुष्टि की गई और जो दूसरे तरफ का निकला वो मारा गया। धार्मिक इमारतें तोड़ी गई और उसपर तिरंगा लगाया गया ताकि सवाल न खड़े हों। वो लोग न तो धर्म की रक्षा कर रहे हैं ना ही देश की इज्जत।
यार जब विपरित प्रवृत्ति के लोग होंगे तो मनभेद भी होंगे मतभेद भी होंगे, होंगी न गलतियां उनमे भी और हममें भी, कर लेंगे धीरे धीरे ठीक, लेकिन इसके लिए किसी की जान ले लेना सही है क्या? जो इंसान इंसान की रक्षा न कर सका हो वो धर्म क्या ही बचा लेगा। लोग सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही, लेकिन गौर से झांक के देखिये अपने अंदर क्या आपके मन मे भी जहर नही भरा था, दूसरे धर्म के लोगों के लिए, आज बस इतना हुआ की उस चिंगारी को हवा मिल गई और शहर जलने लगा।
अपनी चेतना को जगा के रखिये, लोग बरगलाने की साजिश रच रहे हैं, उनका मकसद है अशांति फैलाना, और चाहे अनचाहे आप उनको जीतने दे रहे हैं। व्हाट्सएप और ट्विटर पर फेक न्यूज़ फैला कर, धर्म विशेष पर तंज कस कर।
न समझोगे तो मिट जाओगे हिन्दोस्ताँ वालों,
तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में।
धर्म जाती से ऊपर भी बहुत कुछ बचा है, हमे शिक्षा, रोजगार, पानी, बिजली चाहिए धर्म हम देख लेंगे, तम्हे देश संभालने दिया है तुम वो देख लो।शान्ति की एक अपील कर रहा हूँ क्योंकि मुझे नही पसंद के कोई मेरे हिंदुस्तान को जलता हुआ छोड़ दे।