गांव में अचानक कुत्ते भौंकने लगे थे, मेरी उम्र छोटी थी। मैं ने डर के मारे अपनी दादी से पूछा। "दादी ये कुत्ते इस तरह भौंक क्यूं रहे हैं, और किस पर भौंक रहे है?" दादी का जवाब था "ये चमार हैं।"
ये शब्द नया था मेरे लिए, लेकिन दादी की बात से मेरे दिमाग में एक बात बैठ गई की अगर बेवजह कुत्ता आप पर भौंकने लगे तो आप चमार हैं। फिर मैं थोड़ा और बड़ा हुआ स्कूल पहुंचा दुनिया को देख पाने का अब नया ढंग आ गया था। अब "चमार" शब्द का मतलब बदल गया था, स्कूल में बच्चे दूसरे बच्चों को चमार बोल दिया करते थे क्यूंकि वो इंसान थोड़ा शाम्य दिखता था, थोड़ा गंदगी में रहता था। अब तक मेरे पास चमार शब्द के दो माने थे एक वो जो बचपन में दादी ने बताया था और एक अब जो मैं अपने दोस्तों के बीच देख रहा था। माने ये की जो शाम्य है, गंदगी में रहता है और जिस पर कुत्ते भौंकते हैं वो चमार है।
फिर इस बीच मैंने एक पोस्टर देखा लिखा था "The Great Chamar "। मैंने जानने की कोशिश की, उसी पड़ताल के बीच भीम आर्मी की बात सामने आई, और उसी के साथ सामने आया एक अरसा जिसमें जिल्लत थी, प्रताड़ना थी, अधिकारों का अतिक्रमण था। जी हां, चमार यानी डोम, दलित, हरिजन और ना जाने कितने ही नाम, ताकि वो जिल्लत की जिंदगी से ऊपर उठ सके।
"जब हरि ही हमारे नहीं, तो हम हरिजन कैसे?" ये वाक्य मेरे नहीं हैं, दलित समाज के लोगों के हैं। उनका मानना है कि पूरे समाज ने उसे वाहिष्कृत कर रखा है। ना मंदिरों में घुसने की इजाज़त, ना साथ बिठा पाने की हिम्मत। आज भी मेरे घर में एक अलग बर्तन है, जिसमें खाना सिर्फ दलितों को दिया जाता है। मेरे गांव में जो दलित छोटा मोटा काम करते हैं वो अपना कप साथ ले के चलते है, जी हां कप साथ ले के चलते हैं ताकि लोगों की उनके लिए अलग व्यवस्था ना करनी पड़े। वैसे मैं जाती धर्म पर आस्था कम रखता हूं परन्तु मैं जाती से ब्राह्मण हूं, जिसे सवर्ण माना जाता है, और हम पर सबसे ज्यादा आरोप लगते हैं दलितों की प्रताड़ना को ले कर। क्यूंकि हम ही थे जो मंदिरों में पूजा करवाते थे, हम ही थे जो गुरुकुल में शिक्षा प्रदान करते थे, हम ही थे जो समाज के नियम तय करते थे और हम ही थे जिन्होंने उन्हें इन सब से उन्हें वंचित रखा। हमारे घर कोई बच्चा पैदा होता है तो उसे डॉक्टर इंजिनियर बनाने के सपने देखते हैं और कोई दलित के घर पैदा हो गया तो फिर उसे गंदी नालियां ही साफ करनी पड़ती है, क्यूंकि मैंने आज तक किसी सवर्ण को नली साफ करते नहीं देखा, और कहीं भूले भटके कोई अम्बेडकर जैसा निकाल जाता है तो समाज उसकी खिल्लियां ही बहुत उड़ाते हैं। आज कल एक सेना काफी चर्चे में रहती है नाम है भीम आर्मी, अगर देखेंगे तो उनका रुख काफी हिंसक है लेकिन वहीं दूसरी तरफ ये एक अच्छा संकेत है की अब डर के मारे ही सही लेकिन लोग दलितों के अधिकारों के हनन नहीं करते।
हम आजाद तो हैं मगर हमारी मानसिकता अब भी गुलाम है।