अरे नही!! मैं पृथ्वीराज चौहान की कहानी नहीं सुनाने वाला । मैं तो बस उस महान शासक की उपमा देना चाहता था, आज के मेरे भारत देश की पराधीन पत्रकारिता पे। मैं अक्सर ऐसी विषयों पर लिखता हूँ जो वक़्त के साथ धूमिल न हो जाये लेकिन, जो कुछ भी पिछले दिनों हुआ है, जिस तरह से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले "media" के जड़ों पर हमला हुआ है, जिस तरह कुछ पत्रकारों एक private फॉर्म से सिर्फ इसलिए निकल दिए गए क्योंकि उनलोगों ने सच दिखाने की कोशिश की थी। मैंने सोचा कि अगर इस पर मेरी भी कलाम चुप रही तो क्या अंतर होगा मुझ मैं और उनमें जो मीडिया पर बेतुका लगाम लगाने की कोशिशें कर रहे हैं। आज सिर्फ दो तरह के चैनल रह गए हैं एक " भक्तों" के और एक "दुश्मनों" के । जो चैनल भक्तों के हैं अगर आप उसे देखो तो लगेगा के देश मे रामराज्य आ गया है ( रामराज्य को कृपया कट्टर हिन्दुत्व से न जोड़ें) । और जो अगर दुश्मनों के चैनल देख लिया तो लगेगा कि देश की हालत सीरिया से भी बुरी है, लेकिन जो असल हालात हैं वो इन सब से परे है, बस यही "सच" जो सच मे सच है, दिखाने की कोशिश की थी इनलोगों ने और अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। मैंने सुरुआत में कहा था के "मत चूको चौहान" असल में मैं चौहान उसे कह रहा हूँ जो सत्ता के जंजीरों में जकड़े पड़े है, लेकिन एक आग है, के सुलतान की सुल्तानी को खत्म जरूर की जा सकती है, बस जरूरत है तो कुछ चन्दबरदाईयों की, और हिम्मत! डटे रहने की । ये जो आज सत्ता के घमंड में चूर हैं, जो अपनी ही जड़ों पर दीमक लगा रहे हैं, ये भूल गए हैं कि इन्हें सत्ता तक पहुँचा सकने वाली ये मीडिया ही है। इन्हें ये पता नही है कि सांप पलट कर काटता जरूर है। साथ ही साथ एक गुज़ारिश है आप सब से के उनको देखना बन्द करो जो गलत खबर फैलाते हैं, और एक अनुरोध है कि पत्रकारिता एक पवित्र पेशा है तो इसे पवित्र ही रहने दें।
Mindblowing....grt said bro...its truth
जवाब देंहटाएंWell said bro...
जवाब देंहटाएंLove ur work bro
जवाब देंहटाएंnice brother
जवाब देंहटाएंMind boggling
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