बुधवार, 15 अगस्त 2018

आज़ादी ?

*स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं*
72 वां स्वतंत्रता दिवस, एक लंबा सफर तय किया है भारत ने, हार कर भी और हर हार को जीत में बदल कर भी। इस देश ने वो भी वक़्त देखा के जब एक छोटे कद और बड़े इरादे रखने वाले शास्त्री जी ने आदेश दिया तो लोगों से उसे आदत बना लिया, जब आवाज़ लगाई तो लाहौर तक सब डर गए, ये भी देखा कि एक महिला प्रधान कैसे बनती है और उसके निर्णय कितने साहसी होते हैं, ये भी देखा के इस देश के जवानों ने कैसे हर बार दुश्मन को धूल चटा दी, ये भी देखा के सब ने मिल कर सरकार बनाई, ये भी देखा के किसी दल को इतनी बड़ी बहुमत मिली हो, ये भी देखा के कैसे हम हिंदुस्तानी आपस में लाडे और कैसे एक दूसरे के लिए मददगार साबित हुए। लेकिन इन सब के परे एक चीज, जो इन सब से ऊपर था वो था हमारा देश भारत !!!

आज हर कोई हाथ में चाय लिए ये कहता है के यार इस देश का क्या होगा? कोई अपना निर्णय सुनता है तो कोई अपनी राय दे देता है लेकिन काम कोई नही करता है। क्योंकि हमें मतलब ही नही है। हमें सैनिक चाहिए लेकिन वो पड़ोसी के घर से हो तो बेहतर होगा, भगत सिंह चाहिए लेकिन अपना बेटा नही कोई और, हमें भरत चाहिए लेकिन उसके सामने शेर रखने से डरते हैं। हम डरते हैं इसलिए बेतुके सवाल करते हैं, और इन बेतुके सवालों के जवाब देने में सरकारों को मजा बड़ा आता है। आज 72 साल होने को आये लेकिन जो सबसे बुनियादी चीज है, पानी हम उस समस्या का निदान नही कर पाए। आज जरा सी बारिश हो जाये तो चलने में नही बनता, घुटनो तक पानी भर जाता है, लेकिन ये मुद्दे नही होते हमारे, हमे तो जाती का धर्म का झुनझुना दे दो हम उसे ही बजा कर खुश हो लेते हैं। अरे!!!  पानी का क्या है मिले न मिले लेकिन मंदिर तो वहीं बनेगा!!! देश भगत हैं लेकिन वन्दे माताराम नही बोलेंगे, और जो न बोल तो पाकिस्तानी!! ये अच्छा हिसाब है साहब। आज गौ माता को बचाने को गौरक्षक तो है लेकिन लेकिन अपनी माता और बहनों के सुरक्षा के नाम पर सिर्फ इतना ही है के "घर जल्दी वापिस आ जाना"। "वो हिन्दू है तो मुसलमान से नफरत करता ही होगा जी" , "मुस्लिम के मरने पे इतना बवाल क्यों?", "ये भी आतंकी है", " तो फिर ये लोग भी भगवा आतंकी है" ........ हम हिन्दुतानी लोग आज कल ऐसी ही मानसिकता पाले बैठे हैं, और फिर चाय के टपरी पे कहेंगे कि देश का हाल बुरा है जी।
आज़ादी का दिन है आज। लेकिन हम आज भी आज़ाद नही हैं, हम अपने सोच के ग़ुलाम हैं और ये सोच की ग़ुलामी कहीं हमे फिर से पराधीनता की ओर न ले जाए। सिवाए इसके के हम दूसरों पे उंगलियां उठाते रहे बल्कि एक नेक कदम उठाने की जरूरत है, हर किसी को पहल करने की जरूरत है। 
सोच बदलने की जरूरत है। याद रहे न हिन्दू खतरे में है ना मुस्लिम पे क़यामत आने वाली है, लेकिन अगर जो न सम्भले तो कहीं ये शेर सच न हो जाये जो कभी इक़बाल ने लिखा था

"वतन की फ़िक्र कर नादान मुसीबत आने वाली है,
तेरी बर्बादियों के मश्वरे हैं आसमानों में,
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों 
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में"

अब बात ये है के हिन्दुतान भी हमारा है और इसपे आने वाली मुसीबत भी, तो क्यों न साथ रह कर इनका सामना करें। एक मश्वरा ये भी के अपने प्रतिनिधियों से सवाल करें के उसने आपके लिए किया और आप उसे अपना कीमती मत क्यों दें। आज़ाद होइए दोस्तों अपनी सोच से तब जा कर कहीं आज़ादी का कोई मतलब बनेगा।
जय हिंद, वन्दे मातरं।

1 टिप्पणी:

Tell me about the post, your likes and dislikes!
*********Thanks for Reading*********