सोमवार, 14 जनवरी 2019

समय

ये जो ज़िन्दगी है न एक चक्र में चलती, न उल्टी न सीधी बस कमबख्त गोल गोल ही घूमती है। ये वो बचपन, जवानी और बुढ़ापे वाला चक्र नहीं है, ये चक्र काल का है, उर्दू में वक़्त और तमीज से कही जाए तो समय। वो समय, जो फिरती है, और इसकी खासियत ये है, की इसकी भी कोई समय नही होती। और एक बात, ये वक़्त जो है इतिहास का गवाह भी होता है, (इसे फिल्मी न समझना बस निकल गया flow में)।
उसी "समय" से कुछ बात करनी थी, ( फ़िल्मी नही हो रहे हैं हम, भैया ) बात ये है के इस वक़्त के आगे किसी की चलती क्यों नहीं? न श्री कृष्णा की चली न राम जी की ( देखिए राम जी का नाम controversy के लिए नही कह रहे), न मोहम्मद की चली न ईसा मसीह की, गुरु गोविंद सिंह जी ने भी बहुत झेला ( देखिए "bhasha" secular है) सब के सब भगवान थे, चलो आपके लिए अल्लाह, किसी के GOD किसी के गुरु जी..... ये सब के सब भी वक़्त के चक्र में फसे थे, बुरे दिन देखे थे, भूखे रहे थे, बारिश में भींगे भी बर्फ में जमे भी लेकिन, झुकना पड़ा वक़्त के आगे ( सही बता रहे हैं, फिल्मी नही हुए हैं)...... 
ताने सुनने पड़े श्री कृष्णा को, जिनकी सुदर्शन पलक झपकते ही गाला उतार दे, मार्यादा पुरुषोत्तम पर नारी पर अत्त्याचार के आरोप लगे, अल्लाह के रसुल को भी यज़्ज़िद जैसे नीच इंसान ने घेरा था, अपनी साहिबजादों की कुर्बानी दी थी गुरु गोविन्द सिंह जी ने.....

ये सब भी वक़्त के आगे बेबस और लाचार थे ( इस बार फिल्मी हो गए हम) और वक़्त किसी के लिए नही रुकता हाँ ये बदलता जरूर है। 
अगर आप भी किसी मुशिकल में हैं, तो घबराइए नही, आपके पास खाने और रहने को तो है, और हाँ, दूसरों का दुख आपके दुख से बड़ा है । वक़्त की बात हो ग़ालिब न आये ऐसा हुआ है क्या (नही हुआ न तो आज भी नही होगा) 
" ए बुरे वक़्त !
ज़रा “अदब” से पेश आ !!
"वक़्त" नहीं लगता, 
वक़्त बदलने में।

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