क्लास 9 बजे से थी। मैं 8.30 में बस स्टॉप आ गया, 8.15 वाली बस निकल चुकी थी,अच्छी बस थी,जल्दी पहुंचा देती थी, लेट तो था ही, सो जल्दी से दूसरी बस में चढा, बस लगभग खाली थी, कोलकाता में यह "चमत्कार" जैसा ही था, विंडो सीट पकड़ी, आँखे बंद की, ईयर फोन लगाए, AR REHMAN का तुम तक तुम तक लगाया, हाँ वही.. कुन्दन वाला.. और बस.. फील ले ही रहा था, कि बस ने ब्रेक मारी, इतनी जोर से ब्रेक क्यु मारते हैं, पता नहीं.. आँखे खुली,सामने देखा.. ब्लैक चस्मा.. पीली ड्रेस.. ब्लू स्टॉल.. स्टॉल से पूरा फेस ढका हुआ (बिल्कुल डाकू जैसे), बस आँखे बची थी, पर उसपे भी काला चश्मा चढ़ा था। एक नजर में तो लगा कि भाई है क्या ये.. कितनी सुंदर है। वो मेरे आगे वाली सीट पर बैठी, ठीक मेरे आगे, विंडो सीट .. स्टॉल हटाया, बालों से cluter हटाया, हाँ जो भी बोलते हैं उसको! क्लेचर या क्लचर,पता नहीं, बस हटाया उसको.. थोरा बालों को बिखराया, कुछ बाल मेरे भी हाथ पर आए, मैंने हाथ हटा लिया। जब से वो बस में आई थी एक अलग से खुशबू थी हर तरह, पता नहीं यार कौन सा पर्फ्यूम था। मानो जैसे कि पूरा कोलकाता ही महक उठा हो। कलकत्ता में खाली बस, इतना सुहाना मौसम और ऊपर से ये पल, ऐसा लग रहा था मानो कोई ख़्वाब मुकम्मल हो गया हो। फिर उसने अपने बालों को एक साइड किया, एक बात जरा गौर करे! उसके गले पर कोई तिल विल नहीं था। मैं उसे देखना चाह रहा था, बस बार बार बाकी पैसेंजर के लिए रुक रही थी, चल रही थी, मेरे फ़ोन में गाना भी अभी तक बज ही रहा था, लेकिन अब ईयर फोन कान में नहीं थे। थोरी देर बाद साइड पर्स लटकाए कंडक्टर साहब आ गए, उन्होने बोला टिकिट। चुकी वो मेरे से एक सीट आगे बैठी थी, तो पहले उसी के पास गए, उसने 9 रुपए का टिकिट लिया, लेकिन अफसोस पता नहीं चल पाया कि उसे उतरना कहा है। अब चेहरे का दीदार करने के लिए या तो उसे सीट से उठ कर गेट तक जाना था, या मुझे, लेकिन मेरा तो स्टॉप आया भी नहीं था। बोहोत कोशिश कर रहा था कि एक दीदार हो सके। मैं बेताब था, मियां भाई के जैसे चांद को देखने के लिए, लेकिन वो भी ईद का चांद निकली, बहुत इंतेज़ार करवा रही थी.....
हाँ तो मैं कहाँ था ? उसने ₹9 का टिकिट लिया, मुझे जहां जाना था उसका भाड़ा 10 रुपये था, मुझे लगा कि चलो अच्छा है उसका टिकिट 9 का है और मेरा 10 का, तो वो ही पहले उतरेगी! वाह वो पहले उतरेगी! अब लग रहा था मानो खुद ये रूप दिख के ईडी देगा, दीदार तो शायद अब मुकम्मल लग सा रहा था, बस बार बार अलग अलग स्टॉप पे रुकते गयी। लोग चढ़ते उतरते गए। सुबह का वक़्त था, तो चढ़ने वाले लोग ज्यादा थे। मेरी एक नज़र घड़ी पर भी थी के कहीं ज्यादा लेट न हो जाऊं, बस धीरे धीरे अपने रंग में रंगने लगी, बस वाले ने आवाज लगायी, देखा तो मेरा स्टॉप आने वाला था। लेकिन वो अब तक बैठी ही थी, यार..! उसने तो 9 का ही टिकिट लिया था, मैंने तो 10 का, अच्छा अच्छा..! वो चढ़ी भी तो लेट से थी, यह कैसे भूल गया था मैं? ठीक Ranjhna के एक गाने तुम तक तुम तक, के लाइन (@##£@) के वक़्त ही वो चढ़ी थी, सोचा, चलो मैं ही चुपके से गेट से दीदार कर लूंगा, ये देखना भी तो जरूरी था कि सच मे वो ईद का ही चाँद है ना, मगर अफसोस बस अपने रंग में रंग चुकी थी, ढेर सारे ऑफिस के id कार्ड, स्कूल बैग, ऑफिस बैग के बीच से मैं अपनी नजरो को पार करना चाह रहा था, मेरी हालत उस football के खिलाड़ी के तरह की हो गई थी जिसको दूसरे पाले में घुस के सब से बचते बचाते एक goal करना होता है। oopps.. बस ने ब्रेक लगायी, मेरी नजरे अब भी पूरी शिद्दत से मेहनत कर रही थी, कि कंडक्टर भैया ने बोला " ki dada.. nambe ta na"। उसे देख पाने के जद्दोजहद छोड़ के मुझे नीचे उतरना पड़ा। नीचे उतरते ही मैंने उस सीट की तरफ देखा, अरे..! यह पीली से ब्लू कैसे हो गयी? कोई 30-35 साल का व्यक्ति अपने ऑफिस की id कार्ड लगाए बैठा हुआ था। शायद मेरे बाद वाले स्टॉप ही उसकी स्टॉप है! बस फिर से कोलकाता की तरह तेज़ चलने लगी। अब क्योंकि भीड़ ज्यादा होती है तो शायद वो गेट पे चली गई होगी ताकि अगले स्टॉप पे दिक्कत न हो। एक मन हुआ कि बस से भी तेज़ दौर कर अगले स्टॉप पर चला जाऊ, दीदार तो हो जाए कम से कम मगर आप भूल गए! पहली लाइन.. चुकि मैं लेट था। तो जरा जल्दी जाना था, मैं बस को टक टक निहारते रहा जब तक उसके पीछे दूसरी बस नही आ गई, और वो बस दिखनी बंद हो गयी, चुकि लेट हो रहा था तो मैं उस बस को ज्यादा देर तक निहार भी नहीं पाया.. ट्वीट ट्वीट .. "class is reschedule at 11am.."
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