गुरुवार, 25 जुलाई 2019

लकीर

वो कभी कभार अकेले में बैठ कर अपनी हाथों की लकीरों को लाचार हो कर निहारता रहता था।
"हाँ मिल गई!  यही तो वो लकीर थी। हाँ पंडित जी ने तो बोल था की अगर ये वाली लकीर जब आपस मे मिल जाएगी तब सब ठीक हो जाएगा। हाँ बस अब थोड़ा सा ही तो रहता है, कुछ दिन में ये बढ़ कर आपस मे मिल ही जाएगी। फिर सब ठीक हो जाएगा"।

पीठ पर  एक डंटा पड़ता है पीछे मुड़ कर देखा तो पुलिस वाला जोर जोर से चिल्ला कर कह रहा था, चलो निकलो यहां से!!!
पार्क में भीख मांगना मना है।

जब आपके न चाहते हुए भी आपको लगातार संघर्ष करना पड़े तो ये मत देखो के "कितना संघर्ष किया" ये देखो के कितना बाकी है।
"क्योंकि जब मंज़िल का पता लग जाता है तो रास्ते छोटे हो जाते हैं।"

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

उम्मीद

आज तक की अपनी जिंदगी में कभी मुश्किलों से भागा नहीं, मगर आज पहली बार ऐसा लग रहा है के "काश इन मुश्किलों से समझौता हो जाता " | कभी कभार लगता है मानो रेत दबा रखा हो हाथों में, लाख चाहो! फिसल ही जाती है | न तो ख़ुशी है किसी चीज के होने का और ना गम है सब कुछ खो जाने का, हाँ एक डर है सबकुछ होते हुए भी पास कुछ न होने का | अपने सामने सब कुछ फिसलता देख रहा हूँ, और उनको रोक पाने की हर कोशिश नाकाम सी होती जा रही है | कुछ आँखे हर वक़्त गीली होना चाहती है मगर जो दुःख में है वो न रो पड़े इसकेलिए उसे हंसना पड़ता है, परिवार की सबसे कमजोर कड़ी को ढाल बन के खड़ा होना पड़ता है, "क्यूंकि शायद ये वक़्त हमारा नहीं है "|