गुरुवार, 25 जुलाई 2019

लकीर

वो कभी कभार अकेले में बैठ कर अपनी हाथों की लकीरों को लाचार हो कर निहारता रहता था।
"हाँ मिल गई!  यही तो वो लकीर थी। हाँ पंडित जी ने तो बोल था की अगर ये वाली लकीर जब आपस मे मिल जाएगी तब सब ठीक हो जाएगा। हाँ बस अब थोड़ा सा ही तो रहता है, कुछ दिन में ये बढ़ कर आपस मे मिल ही जाएगी। फिर सब ठीक हो जाएगा"।

पीठ पर  एक डंटा पड़ता है पीछे मुड़ कर देखा तो पुलिस वाला जोर जोर से चिल्ला कर कह रहा था, चलो निकलो यहां से!!!
पार्क में भीख मांगना मना है।

जब आपके न चाहते हुए भी आपको लगातार संघर्ष करना पड़े तो ये मत देखो के "कितना संघर्ष किया" ये देखो के कितना बाकी है।
"क्योंकि जब मंज़िल का पता लग जाता है तो रास्ते छोटे हो जाते हैं।"

6 टिप्‍पणियां:

Tell me about the post, your likes and dislikes!
*********Thanks for Reading*********