शनिवार, 24 नवंबर 2018

कहाँ गई हमारी एकता ?

हिंदुस्तान आज इसलिए महान नहीं है के यहाँ असफाकउल्लाह खान या  भगत सिंह हुए बल्कि इसलिए महान है क्योंकि दोनों मिल कर देश के लिए लड़े थे। ज़रा सोचिये, अगर हम  उस वक़्त भी आज की तरह हिन्दू और मुस्लिम दो विपरीत कौम में बट जाते तो शायद हम आज भी अंग्रेजों की गुलामी कर रहे होते। मुझे समझ नहीं आता की जब हमें बनाने वाले ने हम में फ़र्क़ नहीं किया तो फिर हम कौन होते हैं फ़र्क़ बताने वाले।
  जब एक ही  जगह दो बर्तन होंगे तो टकराएंगे जरूर, पर इसका मतलब यह तो नहीं के उन में से एक को घर से ही निकल दें, नहीं बिलकुल नहीं। अगर हँसते - खेलते रहना है तो कभी उन्हें सहना होगा तो  कभी हमें। घर के निर्माण में खासा वक़्त लगता है पर उसे उजाड़ने में बस कुछ घंटे, हर बार,हिन्दू और मुस्लिम ये दो भाई आपस में मिल कर घर बनाना तो चाहते हैं, पर कुछ सर फिरे लोग हैं जो हर बार हमें तोड़ देते हैं। बड़ी विडम्बना है इस देश कि हमें नेता तोड़ते हैं और देशतगर्द जोड़ जाते है। हर बार कवि सम्मेलनों में, मुशायरों में ये बात कही जाता है "हिंदी, उर्दू  बहनें हैं" तो फिर हिंदी-उर्दू भाषी भाई-भाई क्यों नहीं हो पते ? सच्चाई तो ये है कि हम आज भी एक दूसरे से मिलना चाहते हैं, एक दूसरे के लिए खड़े होना चाहते हैं।  ये वही देश है जहाँ एक मुस्लमान होते हुए भी आलम इक़बाल ने लिखा था 
 " है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां  को नाज़,
अहले नज़र समझते हैं उनको इमाम-ए-हिन्द "
एक हिन्दू होते हुए भी सुदर्शन फ़क़ीर उर्दू के ग़ज़ल लिखते हैं। जब मैं यह दावा करता हूँ कि हम एक दूसरे के लिए बने हैं, तो साबित करने के लिए दलील भी है। कुछ साल पहले BBC की हिंदी वेबसाइट नें एक सर्वे कराया लगभग 30 लाख हिन्दुओं नें वोट किया। सर्वे था कि हिन्दूओं के 10 सबसे पसंदीदा भजन कौन-कौन से हैं? और जब 3 माह बाद परिणाम आया तो  पता चला की असली हिंदुस्तान यही है, परिणाम यह था कि 10 में से पहले 6 भजन शकील बदायुनी के लिखे हुए थे और 4 साहिर लुधियानवी के, 10 के 10 भजन को संगीत नौसाद साहब ने दिया 10 के 10 भजन महबूब अली खान कि फिल्मो में थे, उन दसों भजनो को रूहानी आवाज़ दी मोहमद रफ़ी ने, और उन भजनो में अभिनय किया था युसूफ खान उर्फ दिलीप कुमार ने, असल में हमारा देश यह है न कि गोधरा या मुझफ्फरनगर।असल में यह वह देश है जहाँ राम हुए तो रहीम भी, तुलसीदास हुए तो कबीर भी अगर इस देश की मिट्ट ने कुंवर प्रताप को पला है तो इस देश ने सिराज़ुद्दौला को भी पाला।   भले ही ये दुनिया मुसलमानों का रूप कसाब और याकूब मेनन को मानती हो पर मैं उन मुसलमानों को जनता हूँ जो 26/11 में लड़े थे और कहा था के मर जायेंगे पर इन देहसतगर्दों को अपने कब्र में सोने नहीं देंगे मेरे लिए सच्चा मुस्लमान, रामेश्वरम के मल्लाह का बेटा है, डॉ. अब्दुल कलाम जिसके बदौलत आज भारत विश्व पाताल पर सर उठाये खड़ा है। 
 "जलते घर को देखने वालों 
फूस का छप्पर आप का है 
आग के पीछे तेज हवा है 
आगे मुक्कदर आप का है "
नवाज़ देओबंदी की ये शायरी, मैं उन फिरका परस्तों के लिए कह रहा हूँ, जो हर बार हमें लड़ा देते हैं सच कहता हूँ जिस दिन हम जाग गए न इन जैसों का जीना हराम हो जायेगा। यह देश वह देश है जहाँ सब को बराबरी का हक़ है, ये देश अदावतों का नहीं मोहबत्तों का देश है।  एक बार बस एक बार हम यह सोचें की हम आपस में लड़े क्यों.... और किसके कहने पर लड़े, शयद मसला हल हो जाए। मैंने ये ब्लॉग इसलिए नहीं लिखा की चुनाव लड़ना है या फिर मैं किसी धर्म का हिमायती बनना चाहता हूँ , बस बुरा लगता है इसलिए लिखा। 

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

सफरनामा

सफर जिंदगी का, कब शुरू हुआ ये तो याद नहीं होगा आपको और कब खत्म हो जाये इसका भी अंदाजा नहीं होता हमें | हम तो बस अपना किरदार जी लेते हैं, कभी वो किरदार इतने बेहतरीन होते हैं के लोग उसे भूल नहीं पते और कभी कभार किरदार इतने  साधारण, के लोगों को याद ही नहीं रहता |

पिछले दिनों घर जाने के रस्ते जब मैं train में सफर कर रहा था तभी रस्ते में मेरे दोस्त ने मुझसे कहा के देखो इसको कहते हैं "अस्सी घाट" | अस्सी घाट एक घाट है जो के गंगा मैया के किनारे पे बना है, और ये उत्तर प्रदेश के वारणशी में है, वही उत्तर प्रदेश जहाँ जगहों के नाम बदले जा रहे हैं इनदिनों |

अस्सी घाट!! जिंदगी को करीब से समझने के लिए शयद सबसे मुनासिफ जगह है|  जहाँ एक तरफ धधकते आग में बेरूह हो चुके कुछ लाश जल रहे होते हैं, वहीँ दूसरी तरफ हर शाम गंगा आरती हो रही होती है, कुछ रुकता नहीं है | हाँ किसी के न रहने का दुःख तो होता है लेकिन तभी तक जब तक उसका कोई विकल्प ना मिल जाये | जिंदगी भी तो अस्सी घाट जैसी ही है जहाँ हमेशा सुख और दुःख नदी के दो किनारों पर एक साथ चलते रहते हैं |

शनिवार, 10 नवंबर 2018

उलझन

शायद तुम अब भी उतनी ही खूबसूरत होगी जितनी पहले थी, और उतनी ही चुप चाप सी रहने वाली? मैं शायद इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि मैं अब तुम्हें नही जानता,हाँ तुम्हारे ही नाम का एक शख्स हर दिन रूबरू होता रहता है मुझसे। सुना है मुझ से बेहतर कोई और तुम्हें चाहने लगा है ...... या फिर मुझ में कोई कमी थी शायद। क्योंकि मेरा रक़ीब, मुझ से बेहतर हो ये मुझे बर्दास्त नहीं। 
कभी कभार खुद से ही परेशान हो जाता हूँ मैं क्योंकि, शायद जो मेरा कभी था ही नही मैं उस पर अपना अधिकार समझने लगता हूँ, और जब अधिकारों का हनन हो तो बर्दास्त किसे होता है? लेकिन फिर ये सोचता हूँ के मुझे चाहिए ही क्या था ??  की बस तुम खुश रहो, भले उस खुशी में मैं रहूँ न रहूँ, और आज जब तुम उसके साथ इतना खुश हो तो मैं क्यों दुखी हो रहा हूँ ? खुश होना चाहिए था मुझे ! लेकिन एक बार तुम ! हाँ तुम मात्र एक बार मेरी तरह से हो कर सोचो! ये सोचो कि मैं और तुम जो कभी साथ थे ही नही आज जब अलग हैं तो मैं इतना परेशान क्यों हूँ?
मुझे नही पता के ये ब्लॉग उस तक पहुच भी पाएगी या नही या फिर उन तमाम खातों की तरह तुम्हारे खुद के बनाये गुमनामी में खो जाएगी ? मैं तुम से अब भी उतनी ही मोहब्बत करता हूँ जितनी पहले किया करता था और आज भी तुम पर कोई दवाब नही डाल राहा लौट आने का, क्योंकि तुम्हारे रास्ते जिस से हो कर तुम अपनी मंज़िल तक जाओगी उस रास्ते मे शायद तुमने मेरे नाम का पत्थर भी नही छोड़ा होगा। शायद मेरी मोहब्बत इतनी ही सच्ची थी।