शायद तुम अब भी उतनी ही खूबसूरत होगी जितनी पहले थी, और उतनी ही चुप चाप सी रहने वाली? मैं शायद इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि मैं अब तुम्हें नही जानता,हाँ तुम्हारे ही नाम का एक शख्स हर दिन रूबरू होता रहता है मुझसे। सुना है मुझ से बेहतर कोई और तुम्हें चाहने लगा है ...... या फिर मुझ में कोई कमी थी शायद। क्योंकि मेरा रक़ीब, मुझ से बेहतर हो ये मुझे बर्दास्त नहीं।
कभी कभार खुद से ही परेशान हो जाता हूँ मैं क्योंकि, शायद जो मेरा कभी था ही नही मैं उस पर अपना अधिकार समझने लगता हूँ, और जब अधिकारों का हनन हो तो बर्दास्त किसे होता है? लेकिन फिर ये सोचता हूँ के मुझे चाहिए ही क्या था ?? की बस तुम खुश रहो, भले उस खुशी में मैं रहूँ न रहूँ, और आज जब तुम उसके साथ इतना खुश हो तो मैं क्यों दुखी हो रहा हूँ ? खुश होना चाहिए था मुझे ! लेकिन एक बार तुम ! हाँ तुम मात्र एक बार मेरी तरह से हो कर सोचो! ये सोचो कि मैं और तुम जो कभी साथ थे ही नही आज जब अलग हैं तो मैं इतना परेशान क्यों हूँ?
मुझे नही पता के ये ब्लॉग उस तक पहुच भी पाएगी या नही या फिर उन तमाम खातों की तरह तुम्हारे खुद के बनाये गुमनामी में खो जाएगी ? मैं तुम से अब भी उतनी ही मोहब्बत करता हूँ जितनी पहले किया करता था और आज भी तुम पर कोई दवाब नही डाल राहा लौट आने का, क्योंकि तुम्हारे रास्ते जिस से हो कर तुम अपनी मंज़िल तक जाओगी उस रास्ते मे शायद तुमने मेरे नाम का पत्थर भी नही छोड़ा होगा। शायद मेरी मोहब्बत इतनी ही सच्ची थी।
��awsm
जवाब देंहटाएंपाठकों के लिए एक नया अनुभव।
जवाब देंहटाएंNice one bro
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