"मैं रब में विस्वास नहीं रखता, और ना ही उनको खुश करने की तरकीबें पर। मेरा मानना है की ईश्वर कमजोरों का सहारा है | "
ये विचार मेरे नहीं हैं ये विचार शहीद भगत सिंह के हैं। आप भी सोच रहे होंगे के आज अचानक भगत सिंह पर ब्लॉग क्यों? ना तो उनकी जयंती है और ना ही इन दिनों कोई बवाल हुआ भगत सिंह के नाम पे 樂।
कितना अजीब है ना, के हमें ये सोचना पड़ता है के किसी शहिद की चर्चा क्यों हो रही है ? अजीब है ना ! खैर ! ....
आपको याद न हो तो बता दूं के ये वही भगत सिंह हैं जिन्होंने काकोरी में ट्रेन लूटा था, ये वहीं हैं जिन्होंने असेम्बली में बम फेंक था, और याद अगर और धूमिल हो रही हो तो बता दूं के ये वही थे जिन्होंने हंसते हंसते फांसी पर लटकना स्वीकार किया बजाय इसके के माफी मांग के आज़ाद हो जाते।
माफी मांग सकते थे अंग्रेजी हुकूमत से लेकिन नही मांगी क्योंकि उन्हें विस्वास था के एक भगत सिंह के मरने पर 100 और भगत सिंह पैदा लेंगे। आज का दौर कुछ और ही है। हम तरक्की, खुशहाली, भाईचारा को कहीं ताक पर रख देते हैं और बदहाली को अपने पलकों पे बिठाये रखते हैं, हम न तो देश के लिए खुशी खुशी जान दे सकते हैं और न ही देश की तरक्की के काम आ सकते हैं, हाँ तरक्की के रास्ते में अपना पैर जरूर अड़ाते हैं।
कुर्बान होना सीखो फिर सवाल करना
अद्भुत ! बड़ा ही उम्दा कटाक्ष।
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