डर लगता है क्या ??? हार जाने का ? क्या कभी परेशान हुए हो ? कभी ऐसा लगा है के "मुझ से नही हो पायेगा" ? अगर आप का जवाब हाँ है तो कोई डरने की बात नही है ये औसतन हर तीसरे व्यक्ति की परेशानी है । असल मे हम लोग परिणाम से नही डरते बल्कि डरते हैं तो उस परिणाम तक पहुंचाने के असहज रास्तों से । हम कदम उठाते भी नही हैं और कह देते हैं के "हम से ना हो पायेगा" । बस यही एक बारीक सा अंतर पैदा कर देती है "सफलता" और "असफलता" के बीच में । सफल व्यक्ति सफल इसलिए है क्योंकि वो न तो परिणाम का सोचता है और न परिणाम की प्रतीक्षा करता है, वो बस अपना काम करता रहता है। जिस व्यक्ति ने ये समझ लिया के उसका वश सिर्फ कर्म पर है उसके परिणाम पर नही, वो व्यक्ति सदा सुखी रहेगा इसलिए खुश रहिये ।
क्योंकि असहज हो कर काम करने से बेहतर है के काम करे ही ना । तो अगर सफल होना है तो ये सोचना छोड़ दो के कहीं असफल न हो जाएं। असफल होने का एक मात्र कारण है असफलता का डर । हम कोई काम इसलिए करना नही चाहते क्योंकि डरते हैं के हमारी हार ना हो जाये पर ये नही सोचते के अगर जीत गए तो कितना कुछ बदल जायेगा। हम सब को फूल की तरह महकना तो होता है लेकिन शूलों से परेज भी रखना चाहते है। आगर जगमगाना है तो जलना भी होगा बिना ये सोचे के परिणाम क्या होंगे।
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