मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

अटल





"अगर आप सब बिहारी हैं, तो मैं "अटल" बिहारी हूँ।" ये वो वाक्य हुआ करता था जब पंडित जी बिहार आया करते थे। 2 से 85 तक का सफर सिर्फ 5 सालों में तय करना एक नए पार्टी के तौर पे अपने आप मे अनोखी बात थी। जवानी का जोश और मौजूद दौर की राजनीति को पलट कर रख देने की "अटल" चाहत ने पंडित अटल बिहारी वाजपेयी को "भारत रत्न" पंडित अटल बिहारी वाजपेयी बना दिया। लोग आलोचनाएं करते रहे, इल्ज़ाम लगते रहे, कट्टरता का दाग भी लगाया लेकिन अटल जी कहते रहे "आलोचनाओं से ही व्यक्ति महान होता है।"  वो इन्हें कट्टर कहते रहे और इधर अटल जी मंचों से दहाड़ते रहे और हर किसी को बताते रहे .....
" हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन,
   रग रग हिन्दू मेरा परिचय।"
जितनी तीव्र उनकी बुद्धि थी उतनी ही ठहरी हुई उनकी वाणी। जब भी कुछ बोलते तो सोच समझ कर बोलते, जिह्वा पर इतना नियंत्रण कोई आसान बात नही। मेरे पिता राजनीति विज्ञान(political science) के विद्यार्थी थे, वे अक्सर कहा करते हैं की जो भी इंसान भारत का प्रधानमंत्री बनता है वो कोई आम इंसान नही होता है उसमें कोई दैवीय गुण और जब ये बात अटल जी के लिए बोली जाती है तो सच सा लगता है।
"प्रभु मुझे इतनी ऊंचाई कभी न देना, गैरो को गले न लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना।"
ये शब्द भी अटल जी के हैं जो उनके किताब "मेरी इक्यावन कवितायें" की पहली प्रीस्ट पे है, ये दर्षाता है की वे ज़मीन से कितने जुड़े हुए थे।
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"चौराहे पर लुटता चीर,
प्यादे से पिट गया वज़ीर,
चलूँ आखरी चाल की बाज़ी,
छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं,
राह कौन सी जाऊं मैं"
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16 अगस्त 2018, वो दिन जब पूरा देश शोक में था, आपकी उम्र हो चुकी थी, 93 साल तक आपने देश की सेवा की लेकिन जब स्वर्ग को रवाना हो रहे थे तो लगा की कलम सूख गई हो नज़्म लिखते लिखते। मैं रोया नहीं, बस अपने दुःख को छुपाने के लिए इतना ही कर सका। आज 25 दिसंबर है आपका पहला जन्मदिन जिस में आप नही होंगे।
दुनिया मे ऐसे कम ही लोग कवि हुए हैं जिनकी देहावसान पर उनकी ही कविता कही जाती हो।
अटल जी की ये कविता जो जीवन को दिशा देती हैं-
ठन गई! मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है?
दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा।
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र, शाम हर सुरमई,
रात बंसी का स्वर। बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का,
तेवरी तन गई। मौत से ठन गई।
मैं ये तो नही जानता के आप की महानता का क्या राज है लेकिन इतना जरूर जनता हूँ की मेरी भाषा और मेरा व्यक्तित्व जो भी है जैसा भी है आप की देन है। मैं एकलव्य जितना महान शिष्य तो नही लेकिन आप द्रौण जितने महान जरूर हैं।


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