सोमवार, 31 दिसंबर 2018

भरोसा

"खुदा ऐसे एहसास का नाम है,
रहे सामने और दिखाई न दे।"

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ये शेर बशीर साहब का है, अपनी खुदरंग शायरी के लिए बेहद मसहूर हैं।
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हर किसी के जिंदगी में एक वक्त आता है जब वो ये मानता है के भगवान जैसा कुछ होता नही है, फिर एक वक्त आता है जब हर बात पे भगवान याद आते हैं मतलब ये के हम इस बात से वाकिफ हो जाते हैं के कोई तो है जो हर एक चीज को उसके अस्तित्व से बंधे रखा है। इस बात का एहसास मुझे हो चुका था। हर अच्छे चीज में भगवान को शुक्रिया करता और जो कुछ बुरा होता उस से ये सोच के लड़ लेता के चलो एक नया अनुभव होगा, हरिवंश राय बच्चन की वो पंकिती की " मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो और भी अच्छा, क्योंकि फिर वो भगवान के मन का होता है।" मैं इसी पे आंख मूंदे विस्वास करता था, और ये गलत भी नही है। 
मैं ये सब बातें कर क्यों रहा हूँ? क्योंकि आज साल के आखरी दिन जब एकांत में बैठे ये सोच रहा था की इस साल क्या बिगड़ा, क्या बना, क्या खोया और क्या हांसिल किया उसी दरमियान एक खयाल ये भी था की और सब साल के जैसे मैंने भगवान से ना तो कुछ मंगा और न ही उनको कटघरे में खड़ा किया जब भी कुछ गलत हुआ मेरे साथ। ये शायद आपके लिए बड़ी बात नही होगी पर ज़ेहनी तौर पे मेरा विकास हुआ है। मेरे जानने वाले जानते हैं के 2018 में एक ऐसा वाकया हुआ जिस से मैं पूरी तरह से टूट गया था, पहली बार उस इंसान को रोते देखा जिसने हमें कभी रोने नही दिया लेकिन इस मुश्किल में भी मैंने ऊपर वाले से शिकायत नही की क्योंकि मैं शायद पूरी तरह से उसे ठीक करने में लगा था, और यही बात मुझे समझनी थी आप सब को, कोशिश करो दोस्त ईश्वर, अल्लाह सिर्फ हौसले के लिए हैं।

नए साल की बधाई आप सबको, अपने ईश्वर को मत छोड़िएगा लेकिन सिर्फ उन्हीं के भरोसे भी मत रहिएगा। 
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" रास्ते में फिर वही पैरो का चक्कर आ गया,
जनवरी गुज़रा नहीं था और दिसम्बर आ गया..."
                                                  -Rahat Indoori
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