मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

भूख

हर सुबह की तरह आज भी एक मंडली बानी थी । जिस मंडली के सदस्य छोटे मासूम बच्चे थे। चिंटू ने बताया के कल रात उसे ठीक से खाना भी नही मिला था, और रेयान को तो रात भर बुखार भी था। मनदीप के पैरों में आज चप्पल नही है, कल ट्रैन से उतरते वक़्त टूट गई थी शायद। आज फिर से खड़े हैं सब कतारों में अपनी अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे हैं। सबको काल का हिसाब भी देना है और आज किस किस area  में निकलना है ये भी बताया जा रहा है। इन बच्चों के पास न रहने को घर है और न ही किसी को पुकार कर "माँ" कहने का अधिकार, अनाथ हैं सब के सब। इनका परिवार अब चिंटू, मनदीप, रेयान, छोटू, गुड्डू, पूजा, और अशरफ़ में ही सीमित है। यही एक दूसरे के भाई भी हैं और बाप भी, बहने भी हैं और माँ भी। ये पढ़ना नही जानते, ठीक से रहना नही जानते। आप और मैं ट्रैनो में इन्हीं बच्चों से किनारा कर लेते हैं, जब ये प्लास्टि की बोतलें हम से ले के मुस्कुरा कर चल देते हैं। एक प्लास्टिक की बोतल न हमें खुशी देती है ना गम लेकिन शायद उनकी रात के खाने का इंतज़ाम कर देती है। लेकिन आज कुछ अलग हुआ है आज ये सब दोस्त एक ही साथ एक ही area में जाने वाले हैं। इन्हें नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन तक का काम मिला था। मैं वहीं नई दिल्ली स्टेशन पर अपनी एक दोस्त का इंतज़ार कर रहा था और उससे मिलने के बाद मेरी ट्रैन थी। बस इसी दरम्यान उनसब से मुलाकात हुई। आज सवारी बहुत ज्यादा थी, तो प्लास्टिक की बोतलें भी ज्यादा थीं शायद उन्हें हज़रत निज़ामुद्दीन तक जाना न पड़े। पूजा के पास एक लाल रंग की पुरानी फ्रॉक थी और उसे भी परियों जैसी एक सफेद फ्रॉक चाहिए थी और शायद उपर वाले ने सुन ली। उसे प्लेटफॉर्म पर एक सफेद फ्रॉक मिली थी, उसने जरा सा इंतेज़ार भी नही किया पुराने फ्रॉक के ऊपर ही सफेद वाली नई फ्रॉक पेहेन ली। उसकी आँखों में जो था शायद उसी को खुशी कहते हैं, सिर्फ एक फ्रॉक और उसके आंखों से 3 दिन से भूखे होने का दर्द खत्म हो गया। रेयान को कल रात बुखार था तो उसकी दवाइयों के पैसे पूजा ने ही दिए थे क्योंकि पूजा सबसे बड़ी थी 10 साल की थी। ये पूरी मंडली अपने पीठ पर एक थैली लटकाये हुए हैं जिन में प्लास्टिक की बोतलों को रखते हैं, और शाम को अपने सेठ के पास जा कर हिसाब करना होता है। कभी कभार पूरे पैसे नही मिलते, लेकिन आज का कारोबार अच्छा हुआ था। पैसे अच्छे मिलेंगें, आज सब अच्छे से खा पाएंगे। आज पूरे दिन की थकान के बाद रात के खाने के लिए मेहनत नही करनी होगी। पूजा ने अभी अभी अपने पास पैसे रखे हैं। ये सारे बच्चे उसे दीदी कहते हैं और माँ से ज्यादा प्यार करते हैं। भले ही पूजा 10 साल की हो लेकिन वो 6 बच्चों को संभालती है। कुछ पैसे ले कर वो आज उसी दुकान पर गई है जिस दुकान का खाना छोटू को बहुत पसंद है।
आज तो इनका दिन अच्छा गुजरा, लेकिन हर एक जैसा नही होता। क्या इनकी जिंदगी इसी चक्र में चलती रहेगी की बोतल जमा करो पैसे लो खाना खाओ वरना भूखे रहो?
पिछले दिनों जब देश के नेता रास्ट्रीय गीत पर बवाल कर रहे थे मान और सम्मान की बात कर रहे थे तब मैंने 4 लाइन लिखी थी,
"न गीत में, न गण में,
न मान में, न सम्मान में,
ये सब अपना बचपन ढूंढ रहे हैं,
सबके कूड़ेदान में।"

आज के बाद अगर आपको कोई बच्चा बोतल उठाता दिखे तो उनसे पूछ लेना के खाना खाया या नहीं और अगर न कह दे तो खिला देना मगर पैसे मत देना, वरना ये बच्चे भी भीख मांगना सिख जाएंगे। चाहे अनचाहे ये हमारी गंदगी को साफ करते हैं, और बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं।
एक और अपील है आपसे के अगर आप इतने सक्षम हैं तो किसी एक बच्चे की स्कूल की पढ़ाई करवा देना।

अभी चुनाव आ रहे हैं ये नेता तुम्हें धर्म - जाति में बांटेंगे तुम उनसे "भूख" पर सवाल करना।

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