मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

ज़िन्दगी?

कितना कमज़ोर हूँ न मैं। हर किसी पे चीखता चिल्लाता हूँ। कभी दोस्तों पे कभी घर वालों पे, कभी हालातों पे और कभी कभी तो अपने आप पे भी। इतना कमजोर हो गया हूँ कि अब डर लगने लगा है, की मेरी पसंदीदा चीज खो न जाये, कोई चुरा न ले। डर लगता है खुद को अकेला पा के। सहम जाता हूँ अपनी माज़ी और मुस्तकबिल को सोच के। ये बातें डरातीं है कि मेरे इस नाकामयाब जिंदगी के पीछे जो कुछ पोशीदा चेहरे हैं कहीं टूट के बिखर न जाये। इन्हीं खौफ की लार्ज़ीसों से भागता फिरता हूँ.....
कहीं दूर जा के अपने आप से ये कहना चाहता हूँ कि मैं निहायती कमज़ोर इंसान हूँ। ग़ुनाह करता फिरता हूँ, लोगों पर सवाल करता रहता हूँ।हारने का डर लगता है। हर चीज के बिखर जाने का डर लगता है। मगर इन तमाम मुश्किलों के बाबजूद मैं खड़ा सिर्फ इसलिए हूँ क्योंकि मेरे से कुछ उम्मीदें जुड़ी हैं। कुछ लोग हैं जो हमेशा मेरी जीत की कामना करते हैं। उन्हीं में से एक सख्स ने मुझ से कभी एक बात कही थी।
"मंज़िल तक पहुंचते-पहुंचते कभी ऐसा हो के, हिम्मत हार जाओ तो मुड़ कर पीछे देख लेना शायद आगे बढ़ने का हौसला मिल जाये"

1 टिप्पणी:

Tell me about the post, your likes and dislikes!
*********Thanks for Reading*********