शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

शहीद-ए-आज़म

"मैं रब में विस्वास नहीं रखता, और ना ही उनको खुश करने की तरकीबें पर। मेरा मानना है की ईश्वर कमजोरों का सहारा है | "
ये विचार मेरे नहीं हैं ये विचार शहीद भगत सिंह के हैं। आप भी सोच रहे होंगे के आज अचानक भगत सिंह पर ब्लॉग क्यों? ना तो उनकी जयंती है और ना ही इन दिनों कोई बवाल हुआ भगत सिंह के नाम पे 樂।
कितना अजीब है ना, के हमें ये सोचना पड़ता है के किसी शहिद की चर्चा क्यों हो रही है ? अजीब है ना !  खैर ! ....
आपको याद न हो तो बता दूं के ये वही भगत सिंह हैं जिन्होंने काकोरी में ट्रेन लूटा था, ये वहीं हैं जिन्होंने असेम्बली में बम फेंक था, और याद अगर और धूमिल हो रही हो तो बता दूं के ये वही थे जिन्होंने हंसते हंसते फांसी पर लटकना स्वीकार किया बजाय इसके के माफी मांग के आज़ाद हो जाते।
माफी मांग सकते थे अंग्रेजी हुकूमत से लेकिन नही मांगी क्योंकि उन्हें विस्वास था के एक भगत सिंह के मरने पर 100 और भगत सिंह पैदा लेंगे। आज का दौर कुछ और ही है। हम तरक्की, खुशहाली, भाईचारा को कहीं ताक पर रख देते हैं और बदहाली को अपने पलकों पे बिठाये रखते हैं, हम न तो देश के लिए खुशी खुशी जान दे सकते हैं और न ही देश की तरक्की के काम आ सकते हैं, हाँ तरक्की के रास्ते में अपना पैर जरूर अड़ाते हैं।
कुर्बान होना सीखो फिर सवाल करना

रविवार, 23 सितंबर 2018

थककर बैठ गये क्या भाई?

 दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा 
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा
 जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही
 अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छवास तुम्हारा
 और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है
 थककर बैठ गये क्या भाई? मंज़िल दूर नहीं है | 
                                                         -रामधारी सिंह दिनकर

इस अंक को  पढ़ने से पहले "अंतर " को पढ़िए |

मैंने पहले भी कहा था के संघर्षशील व्यक्ति अगर सफल होना चाहता है तो उसे  परिणाम का नहीं सोचना चाहिए | अगर कुछ सोचना ही है तो ये सोचना चाहिए के सफल होना कैसे है ?

1) जिज्ञासा (curiosity)-

अगर आप के अंदर ये गुण है तो इस  गुण में खुद को सिद्ध कर लीजिये क्यूंकि उत्सुकता अगर है तो कोई भी चीज सीखना मुश्किल नहीं हो सकता चाहे उम्र कोई भी हो | हमारी हिन्दू संस्कृति मे  उत्सुकता को बहुत बड़ा महत्वा दिया गया है | हमने देखा है के अर्जुन कितना उत्सुक था वो सब  जानने के लिए जिससे वो भयभीत था, और साथ ही साथ श्री  कृष्णा जो उत्तर देने में पारंगत थे | एक भयभीत इंसान की "जिज्ञासा" और उसका सवाल करना और तो और स्वयं भगवन का उत्तर देना बताता है के उत्सुकता में कितनी शक्ति है | अगर देखा जाये तो पौराणिक कथाओं में नचिकेता सब से जयादा उत्सुक बालक था जिसे स्वयं यमराज ने ज्ञान दिया और वापिस पृथ्वी पर भेजा था | 
लेकिन सिर्फ उत्सुक हो जाना सफलता की कुंजी नहीं है, उस उत्सुकता से पूछे गए सवाल का उत्तर ढूंढ़ने की आपकी भूख आपको सफल बनाएगी | 

2) धैर्य (patience)-

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
   
हमारी सबसे बड़ी समस्या, के हम धैयरवान नहीं हैं | जरा जरा सी हार पर थक कर बैठ जाते हैं | अटल जी की ये कविता मुझे प्रेरणा देती है डटे रहने की | हम सब सामान्य मनुष्य हैं और विचिलित होना हमारा स्वभाव है परन्तु इस स्वभाव का बुरा प्रभाव ना पड़े हमें अपने आपको धैयरवान बनाना होगा, और खुद को  धैयरवान बनाना खुद के ऊपर है| 

3) नेतृत्वा (Leadership)-

नेतृत्य की छमता हर किसी में नहीं होती, और बिना नेतृत्वा के सफलता मिल पाना उतना ही मुश्किल है जितना के नदी का उल्टा बहना | कुछ लोग तो ये भी कहते हैं के नेतृत्वा की छमता को विकसित भी नहीं किया जा सकता परन्तु मैं इससे सहमत नहीं हूँ मेरा मानना है के अगर आप चाहें और आपको मौका मिले तो आप भी एक अच्छे अग्रलेख बन सकते हैं |



ये 3 कुंजियाँ अगर आपके हाथों में हैं तो सफलता के द्वार पर लगा विशाल सा दिखने वाला वह ताला आसानी से खुल सकता है | 





शनिवार, 15 सितंबर 2018

अंतर

डर लगता है क्या ??? हार जाने का ? क्या कभी परेशान  हुए हो ? कभी ऐसा लगा है के "मुझ से नही हो पायेगा" ? अगर आप का जवाब हाँ है तो कोई डरने की बात नही है ये औसतन हर तीसरे व्यक्ति की परेशानी है । असल मे हम लोग परिणाम से नही डरते बल्कि डरते हैं तो उस परिणाम तक पहुंचाने के असहज रास्तों से । हम कदम उठाते भी नही हैं और कह देते हैं के "हम से ना हो पायेगा" । बस यही एक बारीक सा अंतर पैदा कर देती है "सफलता" और "असफलता" के बीच में । सफल व्यक्ति सफल इसलिए है क्योंकि वो न तो परिणाम का सोचता है और न परिणाम की प्रतीक्षा करता है, वो बस अपना काम करता रहता है। जिस व्यक्ति ने ये समझ लिया के उसका वश सिर्फ कर्म पर है उसके परिणाम पर नही, वो व्यक्ति सदा सुखी रहेगा इसलिए खुश रहिये  ।
क्योंकि असहज हो कर काम करने से बेहतर है के काम करे ही ना । तो अगर सफल होना है तो ये सोचना छोड़ दो के कहीं असफल न हो जाएं। असफल होने का एक मात्र कारण है असफलता का डर । हम कोई काम इसलिए करना नही चाहते क्योंकि डरते हैं के हमारी हार ना हो जाये पर ये नही सोचते के अगर जीत गए तो कितना कुछ बदल जायेगा। हम सब को फूल की तरह महकना तो होता है लेकिन शूलों से परेज भी रखना चाहते है। आगर जगमगाना है तो जलना भी होगा बिना ये सोचे के परिणाम क्या होंगे।

रविवार, 2 सितंबर 2018

मेरे हीरो

हीरो !!! एक ऐसा शब्द जिसको सुनते ही हमारे मस्तिष्क में अलग अलग व्यक्तियों के चेहरे सामने आने लगते हैं, कभी सलमान कभी अक्षय,लेकिन एक नाम है, जो मैं और आप भूल जाते हैं | आज किसी बच्चे को उठा कर पूछ लो के बेटा तुम्हारा हीरो कौन है ? तो वो पक्का कहेगा के सलमान है या आमिर है, या  किसी और actor का नाम ले लेगा | अगर पूछो के वो इतना पसंद क्यों है तो पता है वो बच्चे जवाब क्या देते हैं ? कहते हैं के "देखा नहीं कभी कैसे अक्षय कुमार एक साथ 10 गुंडों से लड़ता है, नहीं देखा क सलमान कितनी अच्छी गीत गाता है"| ये विडम्बना है हमारी के हम हीरो उसे मानते हैं जो असल में हीरो है ही नहीं, वो तो मात्र एक अभिनेता है मात्र ACTOR है जो पैसों के लिए कैमरे के सामने ये सब करता है, कभी गीत सुनता है कभी गुंडों को मारता है, परन्तु इन सब में एक इंसान छूट जाता है जो के सच्चे माएनों में हीरो है, मेरे और आप सब के "पापा" ! आपका तो पता नहीं पर मेरे हीरो जरूर हैं मेरे पिता जी | हाँ भले ही गाना अच्छा ना गाते हों, भले गुंडों से लड़ते ना हों भले ही छोटी छोटी बातों पे डर जाते हों पर मेरे हीरो मेरे पापा ही हैं |
क्यूंकि जब भी मैं परेशां हुआ हूँ, जब भी कोई निर्णय लेने में असमर्थ हुआ हूँ, पापा ने बड़ी मीठी आवाज़ में समझाया और रह दिखाई है | गुंडों से तो भिड़ते नहीं देखा पर मेरे लिए पुरे ज़माने से लड़ते देखा है उनको, और हाँ मुझ तक अपनी एक घाव तक का जीकर पहुँचने नहीं दिया | मेरे पापा थोड़े डरपोक हैं, मुझ से कहते हैं के नई जगह है किसी से लड़ाई मत करना, वो डरते हैं के वो नहीं होंगे तो शायद कुछ गड़बड़ न हो जाये | मेरे खर्चों का हिसाब लेते हैं, मेरी बेतुकी मांगों पर फटकार भी लगते हैं | जैसा हीरो करता हैं न फिल्मों में बिकुल वैसे ही वो मेरा ध्यान रखते हैं |  फिल्मों के हीरो और मेरे पापा में एक अन्तर है के फिल्मों में हीरो कभी हारता नहीं है, पर मेरे पापा हारते हैं ताकि उनके बच्चे खुश हो जाएँ और बच्चों से हार कर भी वो खुद को जीता हुआ मानते हैं |