अभी जब मैं ये आलेख लिख रहा हूं,उस वक्त देश में तनाव,खिंचाव के चरम बिंदु पर अवस्थित आक्रोशपूर्ण, हिंसक माहौल है,जहां लोग इतने संवेदना-शून्य हो गये हैं कि एक-दूसरे का खून करने पर उतारु हैं। मैं इस सारी समस्याओं का जङ लोगों का अहंकारी स्वभाव,संवादहीनता और एक-दूसरे के प्रति पाला गया पूर्वाग्रह से ग्रसित घृणा को मानता हूं।आज के इस जहरीले माहौल में यदि हमें किसी चीज की सर्वाधिक उपयोगी है तो वो है आपसी सद्भाव और परस्पर इज्जत और लगाव और इस सभी गुणों के आदर्श पुरुष हैं अटल बिहारी वाजपेयी।जो किसी भी प्रकार के मनमुटाव,विरोध से उपर उठकर लोगों का अपार स्नेह और सम्मान करते थे।
मुझे याद है,जब 2006 के संसद के शीतकालीन सत्र में भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी(मार्क्सवादी)के बङे नेता और तत्कालिन लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी ने सदन में अनाज के बदले तेल घोटाला मामले के हंगामे में कुछ सरकारी कामकाज निपटा लिये।इससे खफा होकर रा.ज.ग. ने ना सिर्फ उनका बहिष्कार किया, बल्कि उन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए पत्र भी लिखा।उस समय अटलजी रा.ज.ग. के अध्यक्ष थे,इसलिए पत्र में पहला हस्ताक्षर भी उन्हीं का था।पत्र में वाजपेयी के हस्ताक्षर देखते ही सोमनाथ भावुक हो गये।उन्होने तत्काल देने का फैसला किया।
इसकी सूचना मिलते ही वाजपेयी दौङकर चटर्जी के पास पहुंचे और उन्हें ये कहकर इस्तीफा देने के लिये रोक दिया कि उन्होने स्वेच्छा से नहीं बल्कि पार्टी लाईन के तहत पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।सोमनाथ ने कहा कि अगर वाजपेयी को उनके इमानदारी पर शक है तो वह पल भर भी पद पर नहीं रहना चाहते,तब अटल जी ने कहा कि निजी तौर उन्हें चटर्जी की इमानदारी पर कोई शक नहीं है।इसका खुलासा खुद सोमनाथ चटर्जी ने अपना कार्यकाल पूर्ण होने के कुछ दिन पहले किया था।
इतने संवेदनशील थे अटलजी,ये जानते हुए सोमनाथ चटर्जी धुर विरोधी पार्टी के हैं, उनके इस्तीफे से अपने पार्टी के सदस्यों का मनोबल उंचा ही होता लेकिन अपने मतभेद को मनभेद में नहीं बदलने दिया।उनसे संवाद करने में तनिक भी देरी नहीं की।निजी अहंकार को कतई आङे नहीं आने दिया। आज के इस विपरीत समय में हमारे समाज को अटलजी की ये संवेदनशीलता और निश्चल स्नेह सीखने लायक है।
विचारों के उत्कृष्ट प्रवाह को नमन।
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