बुधवार, 8 जनवरी 2020

अतीत के पन्ने

अतीत को पलट कर देखना एक आवश्यकता है हमारी। मानो या ना मानो, हम सभी अतीत को पलटकर देखते हैं। उन लम्हों को जो खूबसूरत हैं और उन लम्हों को भी जो जीना सिखाती है। कुछ लोग स्वयं का मूल्यांकन करते हुए पीछे मुड़कर देखते हैं, तो कुछ बस पछताने के लिए। और ऐसा वाजिब भी है, यह अतीत ही तो है जो हमारे भविष्य के पथ का निर्धारण करता है।
आखिर ऐसा क्यों है कि हम इस अतीत चक्र से बाहर नहीं निकल पाते हैं? साधारण सा जवाब है, हम उन लम्हों के दामन में खुद को ढूंढ़ते हैं, हम इस उत्तर की खोज में लगे रहते हैं कि क्या हमारा वहां होना न्यायसंगत था? हम बात करते हैं स्वयं से क्योंकि वही हमारे भविष्य का निर्माण करती है। हमारा गत व्यक्तित्व ही हमारे भविष्य के बीज को समेटे हुए होता है। और जो ऐसा करने में असमर्थ है, या तो वो कमजोर है या फिर खुद से भाग रहा है।
इन मूल्यांकन में इसके साथ साथ मन की आवाज़ भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। इसका काम उतना ही मह्वपूर्ण होता है जितना एक रंग मंच में नेपथ्य के आवाज़ का। शायद ये ज़िन्दगी इतनी उत्साही न होती अगर इसमें डर का रोमांच ना होता। डर भले ही छोटी से छोटी बात का हो, जैसे – इम्तिहान ना उत्तीर्ण होने का या फिर प्रेमिका का छोड़ जाना अन्यथा फिर कुछ बड़ी बातें जैसे – अपनों से विलय आदि। ये डर ही है जो हमें जीने की चाहत पैदा करता है और डर ही है जो हमें पीछे मुड़कर देखने को भी मजबूर करता है। ज़िन्दगी की पहेली इतनी उलझी हुई है कि अगर तुमने अतीत से सबक नहीं लिया तो वो फिर से सबक देने वापस आ जाएगा।
हमें जिंदा होने का एहसास कराती है डर और ऐसे ही समय में स्वयं के मूल्यांकन की आवश्कता जान पड़ती है। डर समा जाए तो एक बार पलटकर देखो अपने अतीत को, फिर ध्यान से सुनो अपने मन के आवाज़ को , सारे प्रश्न के हल मिल जायेगे और शायद ज़िन्दगी झेलने या फिर जीने के तरीके भी।

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