गुरुवार, 12 जुलाई 2018

गांधी की प्रासंगिकता

समूची दुनिया की नज़र में गांधी वह व्यक्ति हैं , जिन्होंने प्रथम दृष्टया अहिंसा के असम्भव से लगने वाले हथियार का अंग्रेजों की सत्ता के विरुद्ध बखूबी उपयोग किया । गांधी के विचार और उनकी जीवनशैली हमेशा से आदर्श समाज की कल्पना करने वालों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं । जिस समय गांधी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से वास्ता नहीं पड़ा था , उसी दौर में उन्होंने हिन्द स्वराज नामक पुस्तिका में तमाम वैश्विक समस्याओं का समाधान कर दिया था । इन सभी समस्याओं की जड़ में लालच और हिंसा प्रमुख हैं । अपनी अनगिनत जायज नाजायज इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य हर तिकड़म भिड़ाता है और  असफल होने की सूरत में वह क्रोध में जल उठता है और फिर किसी भी हद से गुजर जाने में संकोच नहीं करता ।  ऐसी स्थिति में गांधी के आदर्श समाज का निर्माण असम्भव है क्योंकि उसके लिए नैतिकता सबसे अहम है । समाज में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो अहिंसा को कायरों का हथियार बताकर गांधी और उनकी पूरी विचारधारा को ही खारिज करने पर तुले हुए हैं । जबकि गांधी कहते हैं कि वह व्यक्ति जो अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए संकटों का वीरता के साथ सामना करने में सक्षम है , वही इस रास्ते पर बिना लड़खड़ाए चल सकता है । आजतक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जन्मा है , जिसने कभी डर को न महसूस किया हो । परन्तु व्यक्ति का साहस जितना विशुद्ध होगा , उतना अधिक उसका जीवन भयमुक्त होगा । जब हम गांधी व उनके अनुयायियों की कल्पना करते हैं ; जिन्होंने बिना हथियार उठाए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया तो हम पाते हैं कि उनके शरीर भी हमारी ही तरह प्राण- पीड़ा के प्रति संवेदनशील थे लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता के बड़े लक्ष्य को ध्यान में रखकर अपनी तमाम मुश्किलों पर विजय प्राप्त की । वे लोग अपने कई कार्यक्रमों में असफल भी हुए लेकिन उस असफलता ने उनके हृदय को इतने गहन रूप से प्रभावित किया , जितना शायद उनकी सफलता भी नहीं कर पाती । बढ़ते अनाचार , घटती सहनशीलता , नित दिन नए तरीकों से फैलती नफरत की भावना व आपसी वैमनस्य का उपचार गांधी जी रास्ते पर चलकर ही हो सकता है । अफ्रीका में तो नेल्सन मंडेला ने गांधी के दिखाए मार्ग पर चलकर अपने देश को तबाही के मार्ग पर जाने से बचा लिया लेकिन पता नहीं हम क्यों उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा देकर उनकी बातों को भूल गए ? गांधी की प्रासंगिकता बनाए रखने में ही भारत की भलाई है वरना विविधता में एकता का हमारा विश्वास पूर्णतः  खंडित हो जाएगा ।
   ऋत्विज झा

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