मुझे ये अच्छा लगता है! वो अच्छा नही लगता! तुम बहुत अच्छे इंसान हो! वो बिल्कुल भी अच्छा नही है! मुझे ठंड का मोसम पसंद है! गर्मी अच्छी नही लगती! ........
ये तमाम ऐसी चीजें हैं जो हम अपनी ज़िंदगी में कहते और मानते आए हैं। हमें कुछ चीज पसंद होती है और कुछ चीजें नापसन्द होती है। किसी चीज को पसंद करना या उस से नफरत करना, ये तो हमारी सोच पर निर्भर करता है। हमारी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है, यदि निर्भर नही कर रहा होता तो जो चीज हमें आज पसंद है वो काल को नापसंद में नही बदलती, और सिर्फ प्राथमिकता को दोष क्यों दें ? कहीं न कहीं वक़्त भी दोषी है। वक़्त अगर बहुत ज्यादा गुजार दिया पसंद के साथ तो वही चीज उतनी ही जल्दी नापसंद भी हो जाती है। अरे नहीं!!! रुको जरा!! रह गया कुछ! किसी से बहुत ज्यादा की गई मोहब्बत उसकी एक गलती से बहुत ज्यादा नफरत में तब्दील हो जाती है। इसीलिए कहा जाता है
" अति अशक्ति से विरक्ति पैदा लेती है"
मतलब के जो हम पसंद या नापसंद करते हैं वो हमारी ही आदतों के कारण, चाहे वो प्राथमिकता का दोष हो या अत्यधिक मोहब्बत का, लेकिन किसी भी चीज का अच्छा या बुरा होना । हमारी अच्छाई और अंदर के बुराइयों पर निर्भर करती है, न के उस चीज पर। तो अब कभी कोई आप से नाराज़ हो तो समझ लेना के गलती उसकी है बशर्ते आप बदले न हों ।
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