मेरे माज़ी के कुछ किस्से हैं, जो कहीं न कहीं मेरे मुस्तकबिल को बयां करते हैं। आप कल क्या होंगे ये बात इस पर भी निर्भर करता है कि आप कल क्या थे। किस्से !!! आप के भी तो होंगे? हर किसी के अपने अपने किस्से होते हैं, और उन किस्से के नायक भी वो खुद ही होते हैं। दुनियाँ से लड़ रहे होते हैं। लोगों को हँसा रहे होते हैं। अपने आपको एक एक्शन हीरो से कम नही समझते हैं हम अपनी किस्सो में। जब भी कहीं कोई दर्द, बेवफाई, धोखा या और ही कुछ बातों की चर्चा होती है, तो हमें लगता है के हमारी कहानी सबसे ज्यादा दर्दनाक है। जब कहानी सुनानी होती है तो हम सारे वाल्मीकि और वेदव्यास बन जाते हैं। हमारी कहानी भी महाभारत सी ही होती है। एक कर्ण जैसा दोस्त होता है। शकुनि जैसे कुछ लोग होते हैं, धृतराष्ट्र जैसे पक्षपाती पिता होते हैं। और दुर्योधन जैसा पुत्र। अर्जुन जैसे एकाग्र भी होते हैं कुछ लोग और भीम से बलशाली भी। लेकिन जो नहीं है वो है युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी, द्रौपदी जैसी स्त्री, और स्वंम भगवान श्री कृष्णा जैसे सारथी।
लेकिन इन सब के परे हम एक लिखी हुई कहानी के किरदार ही तो हैं, बस मंच पर किसी को ज्यादा वक्त मिलता है तो किसी को कम। वक्त कम मिले या ज्यादा, इस से तालियों को फर्क नही पड़ता, कम वक्त में भी बेहतर किरदार निभाने वाला ही सफल होता है।
It's true
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