मैं अगर शब्दों से घिरा न रहूँ तो शायद ये ज़िन्दगी की परेशानियों मार डालेगी मुझे। मेरे अल्फ़ाज़ गर पन्नो पे कुछ लिख न पाई तो शायद मेरा अस्तित्व ही मिट जाएगा। इस शायद में कितना कुछ छुपा है न? हार जाने का डर भी, अपने अल्फ़ाज़ों पे बहुत ज्यादा यकीन भी, या फिर मैं तय ही नही कर पा रहा हूँ........ की मेरे अल्फ़ाज़ों में दिक्कत है या आप की आंखों में? मेरे लफ्ज़ चुभते हैं आपको क्योंकि मुझे शायद बोलना नही आता, आप के जैसा बन के बात करना नही आता, मैं भोलेपन के पैराहन में लिपट कर नही रहना चाहता। शायद इसलिए आप के जैसे सलीके में नही रह पाता। फ़र्ज़ी हंसी और मतलब की दोस्ती करनी ही नही आती, नही!! मैं इतना भी मासूम नही हूँ बस ये जानता हूँ के दिल दुखाने से बेहतर है दिल का न लगाना। मैंने कोशिश की थी आप सब के जैसे बात करने की लेकिन लगा कि मैं खुद को खो दूंगा। मैं 100 की भीड़ में अकेला होता था जब आप जैसा बोलने की कोशिश की। मुझमे शायद तमीज़ न हो, या फिर मैं अगर आप जैसा नही हूँ तो, मैं खुद में जिंदा हूँ। मैं ऐसा ही हूँ, अगर पसंद हूँ तो साथ रखो नही तो फेक दो लेकिन मुझे बदलने को मत कहो।
अगर आप भी मानते हो कि मुझे बात करने का सलीका नही आता तो शायद आप भी उनलोगों में शामिल हो गए हैं जिन्हें मैं मुस्कुरा कर बस ये पूछता हूँ की "कैसे हो?"
न जवाब का इंतेजार करता हूँ और न ही उम्मीद रहती है । और शायद इसलिए ज़िन्दगी में चंद दोस्त ही बना पाया हूँ बाकी सब तो जानने वाले हैं, जो अगर कभी ज़िन्दगी के किसी मोड़ पे मिले तो मुस्कुरा कर पूछ लूंगा के "कैसे हो?"
👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
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